जब पांडवो ने महाभारत का युद्ध जीता तो भगवान कृष्ण उन्हें लेकर धृतराष्ट्र के पास आशीर्वाद लेने जाते है | लेकिन वहां कौरवों की माता गांधारी ने कृष्ण को श्राप दे दिया | उन्होंने कहा की तुम चाहते तो यह युद्ध रोक सकते थे | लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया | जिस प्रकार मेरे पुत्र किसी गाजर, मूली की तरह युद्ध में काटे गए है और मेरे वंश का नाश हो गया है | उसी प्रकार तुम्हारा सारा वंश एक युद्ध की ज्वाला में जल जाएगा और तुम्हारा राज्य का सर्वनाश हो जायेगा |
श्राप सत्य हुआ और मौसुल के युद्ध में यदुवंशियों का सारा परिवार मारा गया | इससे भगवान श्री कृष्ण काफी दुखी हुए और एक जंगल में जाकर एक पेड़ पर बैठ गए | लेकिन उन्होंने एक पैर निचे लटकाये रखा | ऐसा कहा जाता है एक शिकारी ने उनके उनके पैर के अंगूठे को हिरन की आँख समझकर निशाना लगाया | जिसे बहाना बनाकर भगवान श्री कृष्ण के अपनी मृत्यु का वरण किया और देवलोक की और प्रस्थान किया |
इस समाचार को सुनकर बलराम ने भी जलसमाधि ले ली | अर्जुन को जब यह पता चला तो उसकी रूह काँप गयी और तुरंत वह द्वारिका चले गए | वहां की जनता की दयनीय स्थिति देखकर उन्होंने अपने मामा वसुदेव से द्वारिका की प्रजा और भगवान श्री कृष्ण की सारी पत्नियों को लेकर इंद्रप्रस्थ लेकर जाने का आग्रह किया | वसुदेव अर्जुन की बात मान गए |
जब अर्जुन सारी प्रजा और श्री कृष्ण की पत्नियों सहित द्वारिका से बाहर गए तो इसके तुरंत बाद ही द्वारिका समुद्र में डूब गयी | इस दृश्य को द्वारिकावासी देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं | उस समय वे सभी बस यही सोचते हैं कि ईश्वर की लीला अद्भुत है | द्वारिका जब तक नहीं डूबी, जब तक कि हम सभी द्वारिका के बाहर नहीं निकल गए |
इंद्रप्रस्थ जाते समय बीच में राजस्थान और मध्यप्रदेश का जंगल पड़ता था | जिसमे काफी डाकू रहते थे | जब उन्होंने इतने सारे समुदाय को देखा तो हमला बोल दिया | अर्जुन ने कहा की मैं द्रोण शिष्य अर्जुन हूँ | लेकिन वृद्ध अर्जुन की इस बात को किसी ने नहीं सुना | इसके बाद अर्जुन ने अपने दिव्यास्त्रों का आवाहन किया | लेकिन दिव्यास्त्रों का उपयोग काफी समय से ना होने के कारण अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों को प्रकट करने की शक्ति भूल गया |
अर्जुन के सामने डाकुओ द्वारा सारा धन, स्त्रियां और भगवान कृष्ण की सारी रानियाँ अपने अधीन कर ली गयी | इस प्रकार भगवान कृष्ण और उनकी पत्नियों का स्वर्गवास हुआ | लेकिन उनकी प्रिय 8 पत्नियॉ जिनमे रुक्मणि, सत्यभामा, कालिंदी, भ्रदा आदि को अर्जुन बचाने में सफल हो गया और कृष्ण की पत्नियों ने इन्द्र प्रस्थ जाकर अग्नि समाधी ले ली | अर्जुन ने भगवान कृष्ण के प्रपोत्र वज्रनाभ को इंद्रप्रस्थ का राजा बना दिया और पांडव स्वयं भी भोग विलास छोड़कर जंगल की ओर चले गए |